Friday, July 19, 2019

आज रात से बड़ी बेचैनी महसूस कर रहा हूँ

बड़ी मुश्किल से दो तीन घंटे ही सो पाया हूँ .....कल एक फ़ेस्बुक पोस्ट में एक बच्चे की तस्वीर ने दिल व दिमाग़ को विचलित कर दिया .....मासूम की अकड़ी हुई लाश ने कुछ देर के लिए ज़िंदा लाश बना दिया.....रोज़ाना सीमांचल में कहीं ना कहीं लाश......बस्तियों में तड़पते लोग और उनके घर आँगन में पानी ही पानी ये प्राकृतिक आपदा है या सरकारों की अनदेखी........या एम॰एल॰ए॰,एम॰पी॰ चुने गये जनप्रतिनिधियों की सीमांचल के प्रति उदासीनता?.....आख़िर हर साल हो रहे इस प्रलय का कोई  पक्का हल है?क्या बाढ़ से पहले सभी प्रकार के इमर्जन्सी से निपटने के प्रशासनिक दावे और विनाशकारी भयावह  स्थिति पैदा हो जाने के बाद हवाई सर्वेक्षण की हवा हवाई से इन जानलेवा सैलाब से इसका परमनेंट हल हो जाएगा?........2008 में विश्व बैंक से मिली अनुदान 1500 करोड़ राशि का सरकार गमन ना करके अगर नदियों के तटबंध में लगाती तो शायद कुछ भला हो जता......2017 की विनाशकारी बाढ़ ने कितना तांडव मचाया था इसका दर्द अबतक लोग भूल नहीं पाए क्यूँ उसे  राष्ट्रीय आपदा घोषित नहीं किया गया ?क्या सिर्फ़ सरकार द्वारा 6000/- की राशि से हमारा कल्याण हो जाएगा ?कौन ज़िम्मेदार है ?.....बहुत हद तक हम सीमांचल वासी इसका उत्तरदायी है क्यूँ की सरकार के ऊपर दबाव बनाने या अपनी परेशानियों के निदान के लिए हम अपने प्रतिनिधि चुनने में भूल करते आये है हम गूँगे बहरे को विधानसभा लोकसभा में भेजे है .....और हम किसी से सवाल पूछने से भी डरते हैं .......सांसद या विधायक का काम सड़क या पुल पुल्या का अपने हाथों से मरम्मत करना नहीं है बल्कि सरकार से इसका स्थाई रूप से हल निकलवाना है.....मगर हम तो नौटंकी से ख़ुश हैं......6000/- की सरकारी भीक के लिए हाए तौबा करना हमारी आदत और मुक़द्दर बन गया है.......कुछ जन प्रतिनिधि रोड मरम्मत कर फ़ोटो अप्लोड करवा रहे हैं और कोई अपनी बात दमदारी से संसद में कहने से विफल हो रहे है ऐसे में सीमांचल का हाल अल्लाह भरोसे.....चल....चला....चल😭🤔.
(DR۔ Abu Sayem sb ki wall se)

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