"आतंकवाद और इस्लाम"
पैगम्बर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम
के नाम पर " जैश -ए-मोहम्मद " संगठन बना कर बेकसूर लोगों की हत्या करना और आतंक फैलाना इन सब की इजाजत हरगिज़ नहीं दी जा सकती है और न ही इस्लाम में इस की गुंजाइश है और इस्लाम के पवित्र स्थल " मदीना तैयबा " के नाम पर आतंकवादी संगठन " लशकरे तैयबा " बनाने और पाप करने के लिए इस्लाम में कोई जगह नहीं है । हमारे हमारे नबी और धार्मिक स्थल" के नामों की अनुमति किसी भी तरीके से गलत काम के लिये नहीं दी जा सकती है! जो लोग ऐसा करते हैं वह इस्लाम के आदेश का पालन नहीं कर रहे हैं बल्कि वह इस के खिलाफ कार्य कर रहे हैं इसलिए ऐ इस्लाम से खारिज हैं क्योंकि आतंकवाद गैरइस्लामी है और उसका इस्लाम से कोई सम्बन्ध नहीं है और इस्लाम आतंकवाद के सख्त खिलाफ है।बल्कि हमेशा अमन और शांति की बात करता है इस्लाम को आतंकवाद से जोड़ना बिल्कुल बेबुनियाद है ! हमारा रब लूटमार और कत्ल करने वालों को कभी पसंद नहीं करता है । इस्लाम हमेशा न्याय की बात करता है तो फिर इस्लाम का संबंध आतंकवाद से कैसे हो सकता है? आतंकवादी संगठनों का इस्लाम से कोई संबंध नहीं है और यह सिर्फ इस्लाम को बदनाम करते हैं। इस्लाम कहता है कि" जिसने किसी एक इंसान की जान ली तो समझो कि उसने पूरी इंसानियत की जान ली है"।तो ऐसे में कोई मुसलमान आतंकवादी कैसे हो सकता है? इस्लाम को सही समझने के लिए उसकी सही स्टडी जरूरी है।यह बात याद रखें कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता है इसलिए आतंकवाद को किसी भी धर्म से जोड़ना बिल्कुल गलत है!इस्लाम में आतंकवाद नहीं है और इसके नाम पर जो आतंक फैला रहे हैं वे मुसलमान नहीं हैं। कुछ लोगों के द्वारा आतंकवाद में मुसलमानों का नाम लिया जाता है लेकिन मुसलमानों का आतंकवाद से दूर-दूर का कोई संबंध नहीं है.मुसलमानों का नाम आतंकवाद से जोड़ा जाना गलत है. आतंकवाद का कोई मज़हब नहीं होता और उसे किसी धर्म से जोड़ना सही नहीं है.और "कई मामलों में दूसरे धर्म के लोगों का भी नाम आया है जैसे साध्वी प्रज्ञा, असीमानंद, कर्नल पुरोहित और उन्हें जेल भी हुई. इसलिए आतंकवाद से सिर्फ मुसलमानों को जोड़ना गलत है !आतंकवाद को समझने के लिए आतंकवाद की परिभाषा को समझना पड़ेगा।आतंकवाद की परिभाषा: आतंक का अर्थ होता है घबराहट , डर , भय अब यदि आतंक के साथ वादी लगा दिया जाये तो वो आतंकवादी बन जाता है यानि भय का जन्म दाता , डर को बढ़ावा देने वाला लोगों में अपना डर पैदा करने वाला ही आतंकवादी कह लाता है ।अतः निर्दोष लोगों की हत्या करने वाला आतंकवादी कहलाता है अब प्रश्न यह पैदा हो जाता है कि आखिर मुसलमान ही आतंकवादी कैसे ?यदि कोई महिला घरेलु हिंसा की शिकार होती है तो उस के लिए उसका पति आतंकवादी है। यदि किसी महिला का बलात्कार किया जाता है तो उस के लिए बलात्कारी आतंकवादी है। यदि किसी महिला को बस, ऑफिस या रस्ते में छेड़खानी की जाती है तो उस के लिए छेड़खानी करने वाला आतंकवादी है। यदि कोई मनुष्य किसी की हत्या करता है तो वो हत्यारा उस के लिए आतंकवादी है। यदि कोई मनुष्य सरकार के खजाने से चोरी करें तो वो देश के लिए आतंकवादी है। यदि कोई मनुष्य भड़काओ, आपत्ति जनक भाषा का प्रयोग करके लोगों की भावनाओ को ठेस पहुचाये वो भी आतंकवादी है। यदि कोई किसी विशेष धर्म के पर किसी भी प्रकार का हमला करे वो आतंकवादी है। यदि कोई व्यक्ति अपने देश के संविधान का पालन न करें वो भी आतंकवादी है अदि । अगर हम यह कहें कि आतंकवादी केवल मानव का खून बहाना जनता है तो ऐसा कहना गलत नही है आतंकवादी दो प्रकार होते हैं: एक वो जो केवल खून बहाना जानते है भले ही उनके सामने कोई बच्चा आ जाये या बूढ़ा या जवान या हिन्दू हो या मुस्लमान या ईसाई। यह कहना ग़लत न होगा के आतंकवादी मानवता के दुश्मन होते हैं इन का कोई धर्म नही होता इनका सिर्फ खून बहाने का धर्म होता है। और दोसरे वो आतंकवादी जो खून भले ही न बहाते हो पर उनके दिमाग में हमेशा लोगों के दिलों में नफरत का जहर भरने में लगे रहता है भले ही इस नफरत के जहर से मौत न आती हो पर यह मौत आने से भी ज्यादा बड़ी मौत होती है । राजकुमार हिरानी के निर्देशक में बनी बॉलीवुड की प्रसिद्ध फिल्म “पीके” में हिन्दू धर्म के लिए आपत्ति जनक सीन दिखाया गया वो भी गलत था और उसकी निंदा होनी चाहये। पर पैरिस में जो चार्ली हेब्दो अपनी पत्रिका में इस्लाम के" पैगम्बर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम" का मज़ाक उड़ाता है वो भी गलत था। और चार्ली हेब्दो पर आतंकी हमला हुआ वो भी गलत था। या फिर नक्सलवादी आये दिन निर्दोष लोगों का खून बहाते हैं या अपहरण कर उन पर अत्याचार करते हैं तो वो भी मानवता नही है। पर आज कल लोग दोहरे चरित्र के हो गए है। और केवल मुसलमानों को ही आतंकवादी मानते हैं जबकि सत्य यह है कि:
आतंकवादी संगठन चाहे वो “बब्बर खालसा इंटरनेशनल” हो या आतंकवादी संगठन चाहे वो “खालिस्तान कमांडो फोर्स” आतंकवादी संगठन हो या चाहे वो “खालिस्तान जिन्दाबाद फोर्स” हो या आतंकवादी संगठन चाहे वो “यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ आसाम (यू उल एफ ए)” हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ( पी एल ए)” हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट” (यू एन एल एफ) हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “पीपुल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ कांगलेपाक’ (पी आर ई पी ए के) हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “कांगलेपाक कम्यूनिस्ट पार्टी’ ( के सी पी) हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “कांगलेई याओल काम्बा लुप” ( के आई के एल) हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “मणिपुर पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट’ ( एम पी एल एफ) हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स’ हो
आतंकवादी संगठन चाहे वो “नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा” हो आतंकवादी संगठन चाहे वो ” लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम” हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “अखिल भारतीय नेपाली एकता समाज” ( ए बी एन ई एस) हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “गारो नेशनल लिबरेशन आर्मी (जी एन एल ए) ” आदि हो या आतंकवादी संगठन चाहे वो “आई सी आई सी ” हो आतंकवादी संगठन चाहे वो”अल-कायदा” हो
आतंकवादी संगठन चाहे वो “लश्कर-ए-तैयबा पास्बां-ए-अहले हदीस” हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “जैश-ए-मोहम्मद/तहरीक-ए-फुरकान” हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “हरकत-उल-मुजाहिद्दीन हरकत-उल-अंसार/हरकत-उल-जिहाद-ए-इस्लामी
दीनदार अंजुमन” हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “अल शबाब” हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “बोको हराम” आदि हो यह सब एक ही जाती के जानवर हैं जो मानवता जाती पर अत्याचार करना अपना कर्तव्य समझते है और इन जैसे सभी आतंकी संगठननो की एक ही विचार धारा होती है वो यह है कि हम जो कर रहें हैं वही सत्य है हम जैसा करते है वो सही करते हैं। यदि इस्लाम आतंकवाद को बढ़ावा देता तो इस्लाम के धर्म गुरु इस के खिलाफ अपना विरोध दर्ज नही कराते अभी पिछले हफ्ते ही पलवामा में आतंकवादी हमले का मुस्लिम समुदाय के लोगों ने विरोध किया और मुस्लिम धर्म गुरुओं ने तथाकथित जेहादी संस्थाओं की आड़ में काम करने वालों के खिलाफ अपना बयान जारी किया और यह भी मालूम होना चाहिए कि दुनिया की हर बुराई को आतंकवाद का नाम नही दिया जा सकता. और आतंकवाद को किसी धर्म से जोड़ना सही नहीं है और कहीं भी जब कोई आतंकवादी हमला हो तो बेगैर जाँच और सबूत के किसी विशेष समुदाय को निशाना बनाना बिलकुल सही है!आखिर में फिर कहना चाहूँगा कि इस्लाम आतंकवाद के सख्त खिलाफ है और इस्लाम धर्म में इस की कोई गुंजाइश नहीं है!
✍ अब्बास -अल-अजहरी
पैगम्बर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम
के नाम पर " जैश -ए-मोहम्मद " संगठन बना कर बेकसूर लोगों की हत्या करना और आतंक फैलाना इन सब की इजाजत हरगिज़ नहीं दी जा सकती है और न ही इस्लाम में इस की गुंजाइश है और इस्लाम के पवित्र स्थल " मदीना तैयबा " के नाम पर आतंकवादी संगठन " लशकरे तैयबा " बनाने और पाप करने के लिए इस्लाम में कोई जगह नहीं है । हमारे हमारे नबी और धार्मिक स्थल" के नामों की अनुमति किसी भी तरीके से गलत काम के लिये नहीं दी जा सकती है! जो लोग ऐसा करते हैं वह इस्लाम के आदेश का पालन नहीं कर रहे हैं बल्कि वह इस के खिलाफ कार्य कर रहे हैं इसलिए ऐ इस्लाम से खारिज हैं क्योंकि आतंकवाद गैरइस्लामी है और उसका इस्लाम से कोई सम्बन्ध नहीं है और इस्लाम आतंकवाद के सख्त खिलाफ है।बल्कि हमेशा अमन और शांति की बात करता है इस्लाम को आतंकवाद से जोड़ना बिल्कुल बेबुनियाद है ! हमारा रब लूटमार और कत्ल करने वालों को कभी पसंद नहीं करता है । इस्लाम हमेशा न्याय की बात करता है तो फिर इस्लाम का संबंध आतंकवाद से कैसे हो सकता है? आतंकवादी संगठनों का इस्लाम से कोई संबंध नहीं है और यह सिर्फ इस्लाम को बदनाम करते हैं। इस्लाम कहता है कि" जिसने किसी एक इंसान की जान ली तो समझो कि उसने पूरी इंसानियत की जान ली है"।तो ऐसे में कोई मुसलमान आतंकवादी कैसे हो सकता है? इस्लाम को सही समझने के लिए उसकी सही स्टडी जरूरी है।यह बात याद रखें कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता है इसलिए आतंकवाद को किसी भी धर्म से जोड़ना बिल्कुल गलत है!इस्लाम में आतंकवाद नहीं है और इसके नाम पर जो आतंक फैला रहे हैं वे मुसलमान नहीं हैं। कुछ लोगों के द्वारा आतंकवाद में मुसलमानों का नाम लिया जाता है लेकिन मुसलमानों का आतंकवाद से दूर-दूर का कोई संबंध नहीं है.मुसलमानों का नाम आतंकवाद से जोड़ा जाना गलत है. आतंकवाद का कोई मज़हब नहीं होता और उसे किसी धर्म से जोड़ना सही नहीं है.और "कई मामलों में दूसरे धर्म के लोगों का भी नाम आया है जैसे साध्वी प्रज्ञा, असीमानंद, कर्नल पुरोहित और उन्हें जेल भी हुई. इसलिए आतंकवाद से सिर्फ मुसलमानों को जोड़ना गलत है !आतंकवाद को समझने के लिए आतंकवाद की परिभाषा को समझना पड़ेगा।आतंकवाद की परिभाषा: आतंक का अर्थ होता है घबराहट , डर , भय अब यदि आतंक के साथ वादी लगा दिया जाये तो वो आतंकवादी बन जाता है यानि भय का जन्म दाता , डर को बढ़ावा देने वाला लोगों में अपना डर पैदा करने वाला ही आतंकवादी कह लाता है ।अतः निर्दोष लोगों की हत्या करने वाला आतंकवादी कहलाता है अब प्रश्न यह पैदा हो जाता है कि आखिर मुसलमान ही आतंकवादी कैसे ?यदि कोई महिला घरेलु हिंसा की शिकार होती है तो उस के लिए उसका पति आतंकवादी है। यदि किसी महिला का बलात्कार किया जाता है तो उस के लिए बलात्कारी आतंकवादी है। यदि किसी महिला को बस, ऑफिस या रस्ते में छेड़खानी की जाती है तो उस के लिए छेड़खानी करने वाला आतंकवादी है। यदि कोई मनुष्य किसी की हत्या करता है तो वो हत्यारा उस के लिए आतंकवादी है। यदि कोई मनुष्य सरकार के खजाने से चोरी करें तो वो देश के लिए आतंकवादी है। यदि कोई मनुष्य भड़काओ, आपत्ति जनक भाषा का प्रयोग करके लोगों की भावनाओ को ठेस पहुचाये वो भी आतंकवादी है। यदि कोई किसी विशेष धर्म के पर किसी भी प्रकार का हमला करे वो आतंकवादी है। यदि कोई व्यक्ति अपने देश के संविधान का पालन न करें वो भी आतंकवादी है अदि । अगर हम यह कहें कि आतंकवादी केवल मानव का खून बहाना जनता है तो ऐसा कहना गलत नही है आतंकवादी दो प्रकार होते हैं: एक वो जो केवल खून बहाना जानते है भले ही उनके सामने कोई बच्चा आ जाये या बूढ़ा या जवान या हिन्दू हो या मुस्लमान या ईसाई। यह कहना ग़लत न होगा के आतंकवादी मानवता के दुश्मन होते हैं इन का कोई धर्म नही होता इनका सिर्फ खून बहाने का धर्म होता है। और दोसरे वो आतंकवादी जो खून भले ही न बहाते हो पर उनके दिमाग में हमेशा लोगों के दिलों में नफरत का जहर भरने में लगे रहता है भले ही इस नफरत के जहर से मौत न आती हो पर यह मौत आने से भी ज्यादा बड़ी मौत होती है । राजकुमार हिरानी के निर्देशक में बनी बॉलीवुड की प्रसिद्ध फिल्म “पीके” में हिन्दू धर्म के लिए आपत्ति जनक सीन दिखाया गया वो भी गलत था और उसकी निंदा होनी चाहये। पर पैरिस में जो चार्ली हेब्दो अपनी पत्रिका में इस्लाम के" पैगम्बर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम" का मज़ाक उड़ाता है वो भी गलत था। और चार्ली हेब्दो पर आतंकी हमला हुआ वो भी गलत था। या फिर नक्सलवादी आये दिन निर्दोष लोगों का खून बहाते हैं या अपहरण कर उन पर अत्याचार करते हैं तो वो भी मानवता नही है। पर आज कल लोग दोहरे चरित्र के हो गए है। और केवल मुसलमानों को ही आतंकवादी मानते हैं जबकि सत्य यह है कि:
आतंकवादी संगठन चाहे वो “बब्बर खालसा इंटरनेशनल” हो या आतंकवादी संगठन चाहे वो “खालिस्तान कमांडो फोर्स” आतंकवादी संगठन हो या चाहे वो “खालिस्तान जिन्दाबाद फोर्स” हो या आतंकवादी संगठन चाहे वो “यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ आसाम (यू उल एफ ए)” हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ( पी एल ए)” हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट” (यू एन एल एफ) हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “पीपुल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ कांगलेपाक’ (पी आर ई पी ए के) हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “कांगलेपाक कम्यूनिस्ट पार्टी’ ( के सी पी) हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “कांगलेई याओल काम्बा लुप” ( के आई के एल) हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “मणिपुर पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट’ ( एम पी एल एफ) हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स’ हो
आतंकवादी संगठन चाहे वो “नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा” हो आतंकवादी संगठन चाहे वो ” लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम” हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “अखिल भारतीय नेपाली एकता समाज” ( ए बी एन ई एस) हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “गारो नेशनल लिबरेशन आर्मी (जी एन एल ए) ” आदि हो या आतंकवादी संगठन चाहे वो “आई सी आई सी ” हो आतंकवादी संगठन चाहे वो”अल-कायदा” हो
आतंकवादी संगठन चाहे वो “लश्कर-ए-तैयबा पास्बां-ए-अहले हदीस” हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “जैश-ए-मोहम्मद/तहरीक-ए-फुरकान” हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “हरकत-उल-मुजाहिद्दीन हरकत-उल-अंसार/हरकत-उल-जिहाद-ए-इस्लामी
दीनदार अंजुमन” हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “अल शबाब” हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “बोको हराम” आदि हो यह सब एक ही जाती के जानवर हैं जो मानवता जाती पर अत्याचार करना अपना कर्तव्य समझते है और इन जैसे सभी आतंकी संगठननो की एक ही विचार धारा होती है वो यह है कि हम जो कर रहें हैं वही सत्य है हम जैसा करते है वो सही करते हैं। यदि इस्लाम आतंकवाद को बढ़ावा देता तो इस्लाम के धर्म गुरु इस के खिलाफ अपना विरोध दर्ज नही कराते अभी पिछले हफ्ते ही पलवामा में आतंकवादी हमले का मुस्लिम समुदाय के लोगों ने विरोध किया और मुस्लिम धर्म गुरुओं ने तथाकथित जेहादी संस्थाओं की आड़ में काम करने वालों के खिलाफ अपना बयान जारी किया और यह भी मालूम होना चाहिए कि दुनिया की हर बुराई को आतंकवाद का नाम नही दिया जा सकता. और आतंकवाद को किसी धर्म से जोड़ना सही नहीं है और कहीं भी जब कोई आतंकवादी हमला हो तो बेगैर जाँच और सबूत के किसी विशेष समुदाय को निशाना बनाना बिलकुल सही है!आखिर में फिर कहना चाहूँगा कि इस्लाम आतंकवाद के सख्त खिलाफ है और इस्लाम धर्म में इस की कोई गुंजाइश नहीं है!
✍ अब्बास -अल-अजहरी
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