Friday, March 29, 2019

आतंकवाद और इस्लाम

"आतंकवाद और इस्लाम"
पैगम्बर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम
के नाम  पर " जैश -ए-मोहम्मद " संगठन बना कर  बेकसूर लोगों की  हत्या करना और आतंक फैलाना इन सब की इजाजत हरगिज़ नहीं दी जा सकती है और  न ही इस्लाम में इस की गुंजाइश है और  इस्लाम के पवित्र स्थल " मदीना तैयबा " के नाम पर  आतंकवादी संगठन " लशकरे तैयबा " बनाने और  पाप करने के लिए इस्लाम में  कोई जगह नहीं है । हमारे हमारे  नबी और धार्मिक स्थल" के नामों  की  अनुमति किसी भी तरीके से गलत काम के लिये  नहीं दी जा सकती है! जो  लोग ऐसा करते हैं वह इस्लाम के आदेश का पालन नहीं कर रहे हैं बल्कि वह  इस के खिलाफ कार्य कर रहे हैं इसलिए ऐ इस्लाम से  खारिज हैं  क्योंकि आतंकवाद गैरइस्लामी है और उसका इस्लाम से कोई सम्बन्ध नहीं है और  इस्लाम आतंकवाद  के  सख्त  खिलाफ है।बल्कि हमेशा अमन और शांति की बात करता है इस्लाम को आतंकवाद से जोड़ना बिल्कुल बेबुनियाद है  ! हमारा  रब लूटमार और कत्ल करने वालों को कभी पसंद नहीं करता है । इस्लाम हमेशा न्याय की बात करता है तो फिर इस्लाम का संबंध आतंकवाद से कैसे हो सकता है? आतंकवादी संगठनों का इस्लाम से कोई संबंध नहीं है और  यह सिर्फ इस्लाम को बदनाम करते हैं। इस्लाम कहता है कि" जिसने किसी एक इंसान की जान ली तो समझो कि उसने पूरी इंसानियत की जान ली है"।तो  ऐसे में कोई मुसलमान आतंकवादी कैसे हो सकता है? इस्लाम को सही समझने के लिए उसकी सही स्टडी जरूरी है।यह बात याद रखें  कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता है  इसलिए आतंकवाद को किसी भी धर्म से जोड़ना बिल्कुल गलत है!इस्लाम में आतंकवाद नहीं है और इसके नाम पर जो आतंक फैला रहे हैं वे मुसलमान नहीं हैं। कुछ लोगों के द्वारा आतंकवाद में मुसलमानों का नाम लिया जाता है लेकिन मुसलमानों का आतंकवाद से दूर-दूर का कोई संबंध नहीं है.मुसलमानों का नाम आतंकवाद से जोड़ा जाना गलत है. आतंकवाद का कोई मज़हब नहीं होता और उसे किसी धर्म से जोड़ना सही नहीं है.और "कई मामलों में दूसरे धर्म के लोगों का भी नाम आया है जैसे साध्वी प्रज्ञा, असीमानंद, कर्नल पुरोहित और उन्हें जेल भी हुई. इसलिए आतंकवाद से सिर्फ मुसलमानों को जोड़ना गलत है !आतंकवाद को समझने के लिए आतंकवाद की परिभाषा को समझना पड़ेगा।आतंकवाद की परिभाषा: आतंक का अर्थ होता है घबराहट , डर , भय अब यदि आतंक के साथ वादी लगा दिया जाये तो वो आतंकवादी बन जाता है यानि भय का जन्म दाता , डर को बढ़ावा देने वाला लोगों में अपना डर पैदा करने वाला ही आतंकवादी कह लाता है ।अतः निर्दोष लोगों की हत्या करने वाला आतंकवादी कहलाता है अब प्रश्न यह पैदा हो जाता है कि आखिर मुसलमान ही आतंकवादी कैसे ?यदि कोई महिला घरेलु हिंसा की शिकार होती है तो उस के लिए उसका पति आतंकवादी है। यदि किसी महिला का बलात्कार किया जाता है तो उस के लिए बलात्कारी आतंकवादी है। यदि किसी महिला को बस, ऑफिस या रस्ते में छेड़खानी की जाती है तो उस के लिए  छेड़खानी करने वाला आतंकवादी है। यदि कोई मनुष्य किसी की हत्या करता है तो वो हत्यारा उस के लिए आतंकवादी है। यदि कोई मनुष्य सरकार के खजाने से चोरी करें तो वो देश के लिए आतंकवादी है। यदि कोई मनुष्य भड़काओ, आपत्ति जनक भाषा का प्रयोग करके लोगों की भावनाओ को ठेस पहुचाये वो भी आतंकवादी है। यदि कोई किसी विशेष धर्म के पर किसी भी प्रकार का हमला करे वो आतंकवादी है। यदि कोई व्यक्ति अपने देश के संविधान का पालन न करें वो भी आतंकवादी है अदि । अगर  हम यह कहें कि आतंकवादी केवल मानव  का खून बहाना जनता है तो ऐसा कहना गलत नही है आतंकवादी दो प्रकार  होते हैं: एक वो जो केवल खून बहाना जानते है भले ही उनके  सामने कोई बच्चा आ जाये या बूढ़ा या जवान या हिन्दू हो या मुस्लमान या ईसाई। यह कहना ग़लत न होगा के आतंकवादी मानवता के दुश्मन होते हैं इन का कोई धर्म नही होता इनका सिर्फ खून बहाने का धर्म होता है। और दोसरे वो आतंकवादी जो खून भले ही न बहाते हो पर उनके दिमाग में हमेशा लोगों के दिलों में नफरत का जहर भरने में लगे रहता है  भले ही इस नफरत के जहर से मौत न आती हो पर यह मौत आने से भी ज्यादा बड़ी मौत होती है । राजकुमार हिरानी के निर्देशक में बनी  बॉलीवुड की प्रसिद्ध फिल्म  “पीके” में हिन्दू धर्म  के लिए आपत्ति जनक सीन  दिखाया गया वो भी गलत था और उसकी निंदा होनी चाहये। पर पैरिस में जो चार्ली हेब्दो अपनी पत्रिका में इस्लाम के" पैगम्बर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम" का मज़ाक उड़ाता है   वो भी गलत था। और  चार्ली हेब्दो पर आतंकी हमला हुआ वो भी गलत था। या फिर नक्सलवादी आये दिन निर्दोष लोगों का खून बहाते हैं या अपहरण कर उन पर अत्याचार करते हैं तो वो भी मानवता नही है। पर आज कल लोग दोहरे चरित्र के हो गए है।  और केवल मुसलमानों को ही आतंकवादी मानते हैं जबकि सत्य यह है कि:
आतंकवादी संगठन चाहे वो “बब्बर खालसा इंटरनेशनल” हो या आतंकवादी संगठन चाहे वो “खालिस्तान कमांडो फोर्स” आतंकवादी संगठन हो या चाहे वो “खालिस्तान जिन्दाबाद फोर्स” हो या आतंकवादी संगठन चाहे वो “यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ आसाम (यू उल एफ ए)” हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ( पी एल ए)” हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट” (यू एन एल एफ) हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “पीपुल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ कांगलेपाक’ (पी आर ई पी ए के) हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “कांगलेपाक कम्यूनिस्ट पार्टी’ ( के सी पी) हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “कांगलेई याओल काम्बा लुप” ( के आई के एल) हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “मणिपुर पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट’ ( एम पी एल एफ) हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स’ हो
आतंकवादी संगठन चाहे वो “नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा” हो आतंकवादी संगठन चाहे वो ” लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम” हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “अखिल भारतीय नेपाली एकता समाज” ( ए बी एन ई एस) हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “गारो नेशनल लिबरेशन आर्मी (जी एन एल ए) ” आदि हो या आतंकवादी संगठन चाहे वो “आई सी आई सी ” हो आतंकवादी संगठन चाहे वो”अल-कायदा” हो
आतंकवादी संगठन चाहे वो “लश्कर-ए-तैयबा पास्बां-ए-अहले हदीस” हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “जैश-ए-मोहम्मद/तहरीक-ए-फुरकान” हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “हरकत-उल-मुजाहिद्दीन हरकत-उल-अंसार/हरकत-उल-जिहाद-ए-इस्लामी
दीनदार अंजुमन” हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “अल शबाब” हो आतंकवादी संगठन चाहे वो “बोको हराम” आदि  हो यह सब एक ही जाती के जानवर हैं जो मानवता जाती पर अत्याचार करना अपना कर्तव्य समझते है और इन जैसे सभी आतंकी संगठननो की एक ही विचार धारा होती है वो यह है कि हम जो कर रहें हैं वही सत्य है हम जैसा करते है वो सही करते हैं। यदि इस्लाम आतंकवाद को बढ़ावा देता तो इस्लाम के धर्म गुरु इस के खिलाफ अपना विरोध दर्ज नही कराते अभी पिछले  हफ्ते ही पलवामा  में आतंकवादी हमले का मुस्लिम समुदाय के लोगों ने विरोध किया और मुस्लिम धर्म गुरुओं ने तथाकथित जेहादी संस्थाओं की आड़ में काम करने वालों के खिलाफ अपना बयान  जारी किया और यह भी मालूम होना चाहिए कि  दुनिया की हर बुराई को आतंकवाद का नाम नही दिया जा सकता. और  आतंकवाद को किसी धर्म से जोड़ना सही नहीं है और कहीं भी  जब  कोई  आतंकवादी हमला हो तो बेगैर जाँच और  सबूत के  किसी  विशेष समुदाय को  निशाना बनाना  बिलकुल सही है!आखिर में फिर  कहना चाहूँगा कि इस्लाम  आतंकवाद के सख्त खिलाफ है और इस्लाम धर्म में  इस की कोई गुंजाइश नहीं है!
✍  अब्बास -अल-अजहरी

مغربی ممالک میں اسلام

"مغربی ممالک میں اسلام"
نیوزی لینڈ کی دو مسجدوں پر حملہ کے بعد امن پسند لوگ  اسلام اور مسلمانوں سے ہمدردی کا اظہار کر رہے ہیں اور  اسلامی تعلیمات اور تہذیب و تمدن  کا  مطالعہ بھی کرنے لگے ہیں لیکن جب برصغیر اور  عرب ممالک میں  مغربی ممالک  کا نام لیا جاتا ہے  تب یہی کہا جاتا ہے کہ یہ ممالک  فحاشی اور عریانیت کے اڈے ہیں! یہاں دین سے بیزار  لوگ یا عیسائی اور یہودی بستے ہیں اور  مسلمانوں کی تعداد  بہت کم ہے
یعنی اقلیت میں ہیں وغیرہ وغیرہ باتیں کرتے ہیں جو لوگ ان ممالک میں  جاتے رہتے ہیں وہ مذکورہ بالا باتوں کی تائید یا تردید کر سکتے ہیں  لیکن  راقم الحروف کے کچھ احباب ان ممالک میں رہتے ہیں  ان کے ذریعے جو باتیں ہمیں معلوم ہوئیں  وہ یہ ہے کہ ان ممالک میں  اسلام تیزی کے ساتھ پھیل رہا ہے  اور آپ گوگل سرچ کریں تو معلوم ہو جائے گا کہ سب سے زیادہ مواد  اسلام پر تلاش کیے جا رہے ہیں! ایسے وقت قادیانی  بہت زیادہ  فائدہ اٹھاتے ہوئے نظر آ رہے ہیں اور لوگ  ان کو مسلم سمجھ کر ان کے دام فریب میں مبتلا ہو رہے ہیں اور پھر ایک دوسری اہم بحث یہ جاری ہو گئی ہے کہ "صوفی ازم  اور وہابی ازم " میں  سے کن مکتب فکر کو اختیار کیا جائے یا شیعہ فکر کو اختیار کیا جائے اس طرح  جدید مسلم کنفیوژن کے شکار ہوتے جا رہے ہیں! لیکن ان احباب کے ذریعے یہ بھی معلوم ہوا کہ  "صوفی ازم " کی طرف جدید مسلمانوں  کا زیادہ میلان ہے ! کیونکہ عالمی سطح پر  دہشت گردی  میں  جتنی  تنظمیوں کا نام آتا ہے ان میں سب کے سب " وہابی ازم " سے تعلق رکھتے ہیں اور ہاں! یہ الگ بحث ہے یہ لوگ دہشت گردی میں  ملوث ہیں کہ نہیں ہیں! ایسے وقت میں " صوفی ازم " سے تعلق رکھنے والے مدارس، مشائخ عظام ، علمائے کرام، اور تنظمیوں کی ذمہ داریاں کافی بڑھ جاتی ہیں کہ  ایسے افراد تیار کریں جو مغربی ممالک میں انہیں  کی زبان میں سائنٹفک طریقے سے " دعوت و تبلیغ " کا فریضہ انجام دے سکیں اور اسلام کے  پیغام کو پہنچا سکیں اور میدان خالی دیکھ  کر جو باطل فرقے  بہروپیا بن کر  ان کو اپنی جماعت میں داخل کر رہے ہیں ان کو روک سکیں،اب سب اہم بات یہ ہے کہ کہ مغربی ممالک کے لوگ اسلام قبول کیوں کر رہے ہیں  ؟ تو اس کے چند وجوہات ہیں:

  •  اعداء اسلام  کے ذریعے  مغربی ممالک میں منظم طریقے سے  اسلاموفوبیا ( اسلام کا خوف ) کو بڑھاوا دیا جا رہا ہے خاص طور پر یہودی اور عیسائی مشترقین اس میں ملوث ہیں  اور  اس تحریک میں  عیسائی اور یہودی نوجوان  کی ذہن سازی کی جاری ہے جس طرح ہندوستان میں کچھ انتہا پسند ہندتو تنظمیوں کے ذریعے یہ اعلان کیا جاتا ہے کہ  مسلمانوں کی آبادی بڑھ رہی ہے اگر ایسے ہی معاملہ چلتا رہا تو ہندو  اکثریت سے اقلیت میں آ جائیں گے! ایسے حالات میں  نوجوان اور خاص طور پر  غیر مسلم خواتین  اسلام کا مطالعہ کرنے پر مجبور ہو رہی ہیں!
  •  جو مسلم ممالک جنگ اور  خانہ جنگی سے متاثر ہیں ان ممالک کے مسلم مغربی ممالک میں پناہ لیے ہوئے ہیں  یہ لوگ اپنی عادت و اطوار اور  ان کے ساتھ  کھانے پینے اور رہنے کی وجہ سے اسلام کا مطالعہ کرنے پر مجبور ہیں ۔
  • ۳-مغربی ممالک میں  مادیت  کا دور دورہ ہے زندگی مشین بن گئی ہے اور خود غرضی عام ہو گئی ہے اور  فیملی  سے ٹوٹ کر  ہر کوئی فرد بن گیا ہے اور  "لیو ان ریلیشن " اور "گرل فرینڈ اور بوائے فرینڈ " کا  نسخہ نے زندگی کو اجیرن بنا دیا ہے  اور " اولڈ ہاؤس " کثرت سے کھل رہے ہیں اور بیٹا یا بیٹی جوان ہوتے ہی الگ رہنے کے عادی ہو رہے ہیں ایسے حالات میں انہیں لگتا ہے کہ اسلام ہی بھنور میں پھنسی ان کا نیا پار لگا سکتا ہے اور ان کی عائلی زندگی دوبارہ  سنور سکتی ہے  اسلام اسلام میں داخل ہو رہے ہیں!
  •  پوری دنیا میں کچھ لوگ  اسلام اور مسلمانوں کے پیچھے پڑ ہیں  اور ہر جگہ اور ہر معاملے میں اسلام، مسلمانوں اور علماء کو ملوث کرنے کی کوشش کرتے ہیں ان کے پرچار کی وجہ سے پڑھے لکھے لوگ  اسلام کا مطالعہ کرنے پر مجبور ہو رہے ہیں اور اسلام میں داخل ہو رہے ہیں!
  •  مغربی ممالک کے لوگ چرچوں،کلیساؤں کے پادریوں کی  غلط راہ روی سے متنفر ہوتے جا رہے ہیں اور  یہودیت سے پہلے تنگ آ چکے ہیں ایسے حالات میں قادیانی مسلم بن کر  اور ہندو " یوگا " کو پیش کرکے اپنی طرف راغب کر رہے ہیں کیونکہ ان مغربی لوگوں کو روحانیت کی تلاش ہے اور  فاسٹ فوڈ وغیرہ کھانے سے کافی موٹے اور مہلک بیماریوں میں مبتلا ہو رہے ہیں تو ایسے وقت  میں ہندو "یوگا " کے ذریعے اپنی طرف راغب کر رہے ہیں!
  • ایسے حالات میں ایک بات یہ ہے کہ  مغربی ممالک میں اسلام کے تعلق سے مواد کم ہیں  جیسے جرمن ،اسپینش،فرنچ، پرتگالی وغیرہ ہاں وہی ہیں جن کو مستشرقین نے انٹرنیٹ پر اپلوڈ کیا ہے ایسے وقت ارباب حل و عقد  زمینی سطح کا جائزہ لیں اور  مضبوط لائحہ عمل طے کرکے میدان عمل میں اتریں۔

محمد عباس الازہری المصباحی
چیئرمین  الازہر ایجوکیشنل اینڈ ویلفیئر فاؤنڈیشن کپتان گنج بستی یوپی انڈیا

Thursday, March 28, 2019

نورا ڈاکو

ایک ایس کہانی جسے لاکھوں لوگوں نے سراہا


مولانا ضیاءآللہ صاحب نےاپنی کتاب میں لکھا ، فرماتے ہیں۔
"مجھے وہاڑی کے اک گاؤں سے بڑا محبت بھرا خط لکھاگیا کہ مولانا صاحب ہمارے گاؤں میں آج تک سیرة النبى پر بیان نہی ہوا۔ ہمارا بہت دل کرتا ہے ،آپ ہمیں وقت عنائیت فرما دیں ہم تیاری کر لیں گے ۔ " میں نے محبت بھرے جزبات دیکھ کرخط لکھ دیا کہ فلاں تاریخ کو میں حاضر ہو جاؤں گا۔
دیئے گئے وقت پر میں فقیر ٹرین پر سے اتر کر تانگہ پر بیٹھ کرگاؤں پہنچ گیا تو آگے میزبانوں نے مجھے ھدیہ پیش کر کے کہا مولانا آپ جا سکتے ہیں ہم بیان نہیں کروانا چاہتے۔ وجہ پوچھی تو بتایا کہ ہمارے گاؤں میں %90 قادیانی ہیں وہ ہمیں دھمکیاں دیتے ہیں کہ نا تو تمہاری عزتیں نہ مال نہ گھربار محفوظ رہیں گے اگر سیرة النبى پر بیان کروایا تو۔
مولانا ہم کمزور ہیں غریب ہیں تعداد میں بھی کم ہیں اس لیئے ہم نہی کرسکتے۔"میں نے لفافہ واپس کردیا اور کہا بات تمہاری ہوتی یامیری ہوتی تو واپس چلا جاتا بات مدینے والے آقاﷺکی عزت کی آگئی ہے اب بیان ہوگا ضرور ۔ وہ گھبرا گئے کہ آپ تو چلے جائیں گے مسئلہ تو ہمارے لئیے ہوگا۔
میں نے کہا، "اس گاؤں کے آس پاس کوئی ڈنڈے والا ہے؟" انہوں نے بتایا کہ گاؤں سے کچھ دور نورا ڈاکو ہے پورا علاقہ اس سے ڈرتا ہے۔میں نے کہا چلو مجھے لے چلو نورے کے پاس جب ہم نورے کے ڈیرے پر پہنچے دیکھ کرنورا بولا اج کھیر اے مولوی کیوں آگئے نے ؟
میں نے کہا کہ بات حضورﷺ کی عزت کی آ گئی ہے تم کچھ کرو گے؟ میری بات سن کرنورا بجلی کی طرح کھڑا ہوا اور بولا، "میں ڈاکو ضرور آں پر بےغيرت نئی آں۔"
وہ ہمیں لے کرچل نکلا مسجد میں 3گھنٹے بیان کیا میں نے ۔ اور نورا ڈٹ کرکھڑا رہا آخر میں نورے نے یہ کہا کہ اگر کسی نےمسلمانوں کی طرف آنکھ اٹھاکربھی دیکھا تو نورے سےبچ نہی سکے گا۔
میں واپس آگیا کچھ ماہ بعد میرے گھر پر اک آدمی آیا سر پرعمامہ چہرے پرداڑھی زبان پر درود پاک کاورد میں نےپوچھا، "کون ہو..؟ ". وہ رو کر بولا، "مولانا میں نورا ڈاکو آں۔جب اس دن میں واپس گھر کو لوٹا جا کر سو گیا . آنکھ لگی ہی تھی پیارے مصطفٰی کریمﷺ میری خواب میں تشریف لائے میرا ماتھا چوما اور فرمایا ، "آج تو نے میری عزت پر پہرا دیا ہے، میں اور میرا اللہﷻ تم پرخوش ہوگئے ہیں۔ اللہﷻ نے تیرے پچھلے سب گناہ معاف فرما دیئے ہیں."
مولانا صاحب اس کے بعد میری آنکھ کھلی تو سب کچھ بدل چکا تھا اب تو ہر وقت آنکھوں سے آنسو ہی خشک نہی ہوتے مولانا صاحب میں آپ کاشکریہ ادا کرنے آیا ہوں آپ کی وجہ سے تو میری زندگی ہی بدل گئی میری آخرت سنور گئی ہے۔
اے میرے پیارے اللہ جو شخص بھی اس کو شیئر کرے اس کو حضور ص کی خواب میں زیارت نصیب فرما۔آمین

دیار غیر میں شہادت

جمعہ کے روز نیوزی لینڈ کی دو مساجد میں دہشت گردانہ حملوں کی اطلاع نے دل پاش پاش کردیا۔ ایک جنونی عیسائی دہشت گرد نے نہایت سفاکی کا مظاہرہ کرتے ہوئے نہتے امن پسند مصلیان پر جمعہ کے روز نماز جمعہ کے وقت حملہ کرتے ہوئے شہید اور زخمی کردیا۔ افسوس کہ عالمی میڈیا اس جنونی شخص کو بجاے ’’دہشت گرد‘‘ کہنے کے ’’بندوق بردار‘‘ کہہ رہا ہے اور یہی نہیں اُس سفاک درندے کو پاگل اور نفسیاتی مریض تک کہا جارہا ہے۔ حیرت کو بھی اس مقام پر حیرت ہے کہ وہ مبینہ طور پر نفسیاتی مریض تھالیکن اسے یہ پتا تھا کہ یہ مسلمانوں کی مسجد ہے اور آج یہاں جمعہ کی نماز کے لیے کثیر تعداد میں امن پسند مسلمان جمع ہیں؟ یاللعجب!۔ اگر یہی کوئی مسلمان ہوتا تو پھر میڈیا کا رویہ بڑا ہی اندوہ ناک اور افسوس ناک ہوتا وہ منہ بھر کر دہشت گردی کا راغ الاپنے لگتا ۔
نیوزی لینڈ کی دونوں مساجد میں ہوئے حملوں کے زخمیوں اور شہیدوں کے فہرست میں ایک نام مولانا حافظ موسیٰ پٹیل شہید رحمۃ اللہ علیہ کا بھی ہے۔ حضرت حافظ موسیٰ پٹیل شہید علیہ الرحمہ بڑے درد مند دل رکھنے والے مخلص مبلغ اسلام تھے ۔ یورپی ممالک میں دین و سنیت کے لیے آپ کی خدمات کا ایک روشن باب ہے ۔ حضرت والا1959ء میں لوارا، ضلع بھڑوچ، گجرات، انڈیا میں پیدا ہوئے۔ ابتدائی تعلیم اپنے آبائی وطن میں حاصل کی۔ بعدہٗ دارالعلوم معین الاسلام اور دارالعلوم شاہِ عالم احمد آباد میں دینی تعلیم کی تکمیل کے بعد اعلی تعلیم و تربیت کے لیے مفکر اسلام علامہ قمرالزماں اعظمی کی تعلیمی دانش گاہ جامعۃ الاسلامیہ روناہی میں داخل ہوئے اور یہیں سے فراغت حاصل کی نیز مرکز اہل سنت بریلی شریف سے بھی سندِ فضیلت حاصل کی۔ آپ گذشتہ 35؍ برسوں سے فجی آئیلینڈ میں مذہب اسلام اور مسلک اہل سنت و جماعت بالخصوص افکاررضا کی ترویج و اشاعت میں مصروف تھے۔ فجی آئیلینڈ میں آپ کی دینی ، تعلیمی ، اصلاحی ، سماجی اور روحانی خدمات آبِ زر سے لکھے جانے کے قابل ہیں۔ فجی حکومت کے ذریعے جشن عید میلاد النبی ﷺ کے لیے 12؍ ربیع الاول کو حکومتی سطح پر سرکاری تعطیل کی منظوری بھی آپ ہی کی کوششوں کا ثمرہ ہے۔ مسلمانوں کے عائلی اور معاشرتی مسائل کے لیے فجی حکومت کے ایوانوں تک بھی آپ اپنی آوازیں بلند کیا کرتے تھے۔ مسلم مرودوں اور خواتین کے علاوہ دیگر مذاہب کے ماننے والوں کی تعلیم و تربیت کے لیے آپ ہمیشہ سرگرم رہا کرتے تھے۔ فجی میں دنیا بھر سے آنے والے سربراہانِ مملکت سے بھی آپ اکثر و بیشتر ملاقاتیں کیا کرتے اور ان سے مسلمانوں کے عالمی مسائل کے حل سے متعلق دوٹوک گفتگو کیا کرتے تھے۔ابھی تین ہی ہفتے ہوئے تھے کہ آپ فروغ اسلام و سنیت کے لیے نیوزی لینڈ تشریف لے گئے تھے، جہاں نماز جمعہ سے قبل آپ کا خطاب بھی ہوا، لیکن کسے خبر تھی کہ 15 ؍ مارچ 2019ء کو عیسائی دہشت گرد کی سفاکانہ دہشت گردی کا آپ بھی نشانہ بن جائیں گے۔
  فجی میں آپ کا ایک اچھا اثر و رسوخ تھا۔جیسے ہی آپ کے زخمی ہونے اور انتقال کرجانے کی اطلاع ملی تو بلالحاظ مذہب اور رنگ و نسل ہر ایک نے اپنے گہرے دکھ کا اظہار کیا ۔ سماجی رابطوں کی مشہور ویب سائٹ فیس بک پرفجی آئیلینڈ کے مختلف غیر مسلم یوزرز نے بھی اپنی اپنی وال پر آپ کی شہادت پر گہرے دکھ درد کا اظہار کیا۔ حتیٰ کے حکومت فجی کی جانب سے صدر اور وزیر اعظم نے بھی آپ کی شہادت کو ایک عظیم سانحہ قرار دیااور ان کے اہل خانہ سے اظہار تعزیت بھی کی۔ بولٹن میں مقیم آپ کے متعلقین کے مطابق عالمی سطح پر دین و سنیت بالخصوص افکاررضا کی ترویج و اشاعت میں مصروف جید علماے اہل سنت سے آپ کے بے حد گہرے مراسم تھے ۔ آپ کئی زبانیں جانتے تھے اور بڑے ہی نفیس ، عمدہ اور شیریں لب و لہجے میں خطابت کیا کرتے تھے ۔ آپ کی تقریریں سننے کے لیے بلالحاظ مذہب کثیر تعداد میں لوگ موجود رہا کرتے تھے۔
ایک فعال اور متحرک مبلغ اسلام کی شہادت یقیناً عالم اسلام اور دنیاے سنیت کا ایک عظیم نقصان ہے اللہ کریم آپ کے درجات کو بلند فرمائے اور ان کے لواحقین کے صبر جمیل اور اجر جزیل کی توفیق بخشے، آمین بجاہ النبی الامین الاشرف الافضل النجیب صلی اللہ تعالیٰ علیہ وآلہ و صحبہ وبارک وسلم !
... مشاہد رضوی ، مالیگاؤں (انڈیا)
17؍ مارچ 2019ء اتوار

ملک عزیز کی دنیا

ملک میں فحاشی وبےراہ روی،قتل وغارت،زنا،سود،رشوت،فلم سازی،سینمابینی،بےپردگی،اوربیہودی گوئہ اوردوردورہ ہےـ مغربی وفرنگی تہذیب کاغلغلہ ہے لیکن بڑےدکھ اورافسوس کامقام ھے کہ ایسے نازک وپرفتن وقت میں بھی دیوبندی ،وہابی اورغیرمقلدمولویوں کوسلام وقیام،درودوفاتحہ اور عرس وجلوس کوبدعت وحرام قراردینےکےسواکچھ نہیں سوجھ رہاھے،کسی بھی وہابی دیوبندی مولوی کی آج تک یہ جرأت نہ ہوئی کہ وہ سینمابینی، فیشن پرستی اوربےپردگی وغیرہ کےخلاف کوئی کتاب کاپمفلیٹ شائع کرےـ اورسلام وقیام اوردرودوفاتحہ کےخلاف نہ جانےکتنی کتابیں اورپمفلیٹ لکھ کرشائع کرکےقوم کےمال کوضائع کرچکےـ ان میں سےایک کونڈاکابھی مسئلہ ہے جس کےخلاف یہ حضرات جم کرسامنےآتےہیں اوراس کورافضیوں تبرائیوں کی رسم بدقراردیتےہیں،توکبھج معاذاللہ صحابی رسول صلےاللہ علیہ وسلم کی گستاخی کےمترادف ٹھہراتےہیں،کبھی یہ کہتےہیں کہ یہ رسم بد ۱۹۰۶ء میں رامپورسےشروع ہوئی اوراس کاموجدمیرمینائی ہےاورتوکبھی کہتےہیں.کہ علماےبدایوں اورلکھنؤ نے اس کوایجادکیاھے اورنہ جانےکیسی کیسی باتیں اس تعلق سے کرتےہیں ـ
  حالانکہ. علماےاہلسنت وجماعت کے نزدیک یہ ایک امرمستحن اور کارثواب ھے ـ ذیل میں چندعلماکےموقف کربیان کی جسارت کررہاہوں اس خیال کےساتھ کےاپنی عوام اس سے بدظن ہونےاوران کےدام فرہب میں پھسنےسے محفوظ رہے
       *فقیہ اعظم ہندصدرالشریعہ خلیفہ اعلی حضرت مولاناامجدعلی اعظمی علیہ الرحمہ اس کےمتعلق فرماتےہیں* "اسی طرح ماہ رجب میں بعض جگہ حضرت امام جعفرصادق رضی اللہ عنہ کوایصال ثواب کرنےکےلیےپوریوں کوکونڈےبھرجاتےہیں یہ بھی جائزہے مگراس میں بھی اسی جگہ کھانےکی بعضوں نےپابندی کررکھی ھے یہ بےجاپابندی ہے"
       *محدث اعظم پاکستان علامہ سرداراحمدلائل پوری قدس سرہ نےفرمایا* "سیدناامام جعفرصادق رضی اللہ عنہ کی فاتحہ کےلیے۲۲/رجب کوکونڈےبھی شرعاًجائزوباعث خیروبرکت ہےمخالفین اہلسنت اس کوبلادلیل برعت وحرام قراردیتےہیں"
        *حکیم الامت مفسرقرآن مفتی احمدیارخان نوراللہ مرقدہ لکھتےہیں* "رجب شریف کےمہینہ کی ۲۲/ تاریخ کویوپی میں کونڈےہوتےہیں یعنی نئےکونڈےمنگائےجاتےہیں اورسواسیرمیدہ ،سواپاؤشکراورسواپاؤگھی کی پوریاں بناکرحضرت امام جعفرصادق علیہ الرحمہ کی فاتحہ کرتےہیں ـ فاتحہ ہربرتن میں ہرکونڈےپرہوجائےگی ـ اگرصرف زیادہ صفائی کےلیےنئےکومڈےمنگالیں توکوئی حرج نہیں دوسری فاتحہ کےکھانوں کی طرح اس کوبھی باہربھیجاجاسکتاھے ۲۲/ویں رجب کوحضرت امام جعفرصادق رضی اللہ عنہ کی فاتحہ کرنےسےبہت اڑی ہوئی مصیبتیں ٹل جاتی ہے"
    *شیخ الحدیث ادیب شہیرعلامہ عبدالمصطفےاعظمی گھوسوی علیہ الرحمہ فرماتےہیں*  "ماہ رجب میں حضرت اماماجعفرصادق رضی اللہ عنہ کوایصال ثواب کرنےکےلیےپوریوں کےکونڈےبھرتجاتےہیں یہ سب جائزاورامرثواب ہیں فاتحہ کےوقت ایک کتاب داستان عجیب بعض لوگ پڑھتےہیں اس کاکوئی ثبوت نہیں ہےـ فاتحہ دلاناچاہیےکہ یہ ثواب کےکام ہیں"
      علماےاہلسنت وجماعت کی ان عبارتوں سے یہ بات صاف طورسےظاہرہوتی ہے کہ کونڈاکی فاتحہ دلاناجائرودرست ہےاورمرکزاہلسنت بریلی شریف میں امام اہلسنت کے شہزادگان کرام اورخانوادہ کےافراد۲۲/رجب کےکونڈوں کی تقریب مناتےہیں ـ جس سےبھی ظاہرہوتاہےکہ کونڈاکی فاتحہ کرناجائرودرست ہےـ اللہ رب العزت ہم سب کوبزرگوں کےنقش قدم پرچلنےکی توفیق عطاکرےـ ................ آمین بجاہ سیدالمرسلین علیہ التحیہ والثناء
مضمون نگار: جماعت رضائےمصطفے سیتامڑھی کے رکن ہے

اسلامی ممالک کتنے اسلامی ہیں

جو ممالک اسلامی اصولوں کے مطابق زندگی گزار رہے ہیں، ان میں سب سے پہلا نمبر نیوزی لینڈ کا، دوسرا لکسیم برگ، تیسرا آئر لینڈ، چوتھا آئیس لینڈ، پانچواں فِن لینڈ، چھٹا ڈنمارک اور ساتواں کینیڈا کا ہے۔ اب ملاحظہ فرمائیں کچھ اسلامی ممالک، ملائیشیاء 38 نمبر پر، کویت 48، اور بحرین 64 نمبر پر ہے۔ سب سے حیران کن بات یہ ہے کہ دین اسلام کا مرکز سعودی عرب 131 ویں نمبر پر ہے۔
یہ بات ہمارے لئے حیرانی کا سبب تو بن سکتی ہے مگر ناقابل یقین نہیں ہے۔ اگر ہم اپنے ارد گرد نظر دوڑائیں تو ہمیں یقین آجائے گا کہ واقعی یہ ریسرچ بلکل درست ہے۔ اسلام کے جن اصولوں پر ہمیں عمل کرنا چاہیے وہ اصول غیر مسلم ممالک نے اپنا لئے ہیں اور وہی ممالک مسلسل ترقی کی راہ پر گامزن ہیں۔ دن رات محنت و لگن سے کام کرکے وہ لوگ دن دوگنی اور رات چوگنی ترقی کر رہے ہیں۔ ایک ہم ہیں کہ چند نمازیں پڑھ کر اور قرآن پاک کی تلاوت کرکے سمجھنے لگتے ہیں کہ بس دنیا میں آنے کا فرض پورا ہوگیا۔ زیادہ سے زیادہ حج کرلیا۔ حاجی بن کر تو ہر مسلمان حود کو اتنا پاک صاف اور سب سے منفرد سمجھنے لگتا ہے جیسے بس اب اس سے نیک اور اچھا کوئی نہیں رہا۔

قرآن پاک کو سمجھ کر پڑھنے اور اس پر عمل کرنے کے بجائے، اس کو دم درود اور وظائف کی ایک کتاب بنا کر رکھ دیا ہے۔ قرآن پاک کے ایک ایک حرف پڑھنے پر جب دس دس نیکیاں مل جاتی ہیں تو محنت کر کے ثواب کمانے کی کیا ضرورت ہے۔ اسی طرح کتنے حجوں کا ثواب تو گھر بیٹھے ہی مل جاتا ہے۔ ہمیں صرف غرض ہے داڑھی رکھی کہ نہیں، نقاب کیا کہ نہیں، نماز پڑھی کہ نہیں اور روزے تو وہ بھی رکھتے ہیں جنھوں نے کبھی نماز کی شکل بھی نہیں دیکھی ہوتی۔ اگر ان سب باتوں پر آپ عمل کرتے ہیں تو پھر آپ سے اچھا کوئی نہیں اور دین کا فرض بھی پورا ہوگیا۔ کوئی ان لوگوں سے یہ پوچھے کیا اللہ نے پورے قرآن پاک میں انھی چند باتوں پر عمل کرنے کو کہا ہے اور وہ بھی وہ باتیں جس کا فائدہ صرف انسان کی اپنی ذات کے گرد گھومتا ہے، باقی کا قرآن پاک اللہ نے کیا غیر مسلموں کے لئے نازل فرمایا تھا۔ پورے قرآن پاک میں اللہ نے جن باتوں پر بھی عمل کرنے کو کہا ہے وہ سب کی سب فرائض میں آتی ہیں تو پھر ہم یا آپ کون ہوتے ہیں کہ ان میں سے چند اپنی پسند کی باتوں پر عمل کرکے انھی باتوں کو دین کی بنیاد قرار دینے والے۔ اللہ نے خود فرمایا ہے کہ حقوق اللہ سے پہلے حقوق العباد کی پوچھ گچھ ہوگی۔ مگر ہمیں غور کرنے کی کیا ضرورت ہے۔ ہم کھانا تو حلال پسند کرتے ہیں مگر کمانا نہیں۔
ایک چینی تاجر کا کہنا ہے کہ ”مسلمان تاجر میرے پاس آتے ہیں اور کہتے ہیں کہ ہمارے سامان پر جعلی انٹرنیشنل لیبلز اور برانڈز لگا دو اور جب میں انھیں اپنے ساتھ کھانا کھانے کی دعوت دیتا ہوں تو وہ انکار کر دیتے ہیں اور کہتے ہیں کہ ہم حرام نہیں کھاتے۔ میرا ان سے سوال ہے کہ کیا سامان پر جعلی لیبلز لگوانا اور اس کو بیچنا ان کے لئے حلال ہوتا ہے؟ “۔
ایک جاپانی مسلمان کا کہنا ہے کہ ”میں مغرب گیا اور وہاں میں نے اسلام کو ان کی زندگی کے ہر شعبے میں دیکھا، جب کہ وہ غیر مسلم ہیں۔ پھر میں مشرق میں آیا، میں نے اسلام تو دیکھا مگر مسلمان نہیں۔ میں نے خدا کا شکر ادا کیا کہ میں نے اسلام کو جان لیا، اس سے پہلے کہ میں مسلمانوں کے اعمال کو جانتا“۔

مولانا طارق جمیل نے اپنے ایک لیکچر میں بتایا کہ میں ایک غیر ملکی دورے پر گیا۔ جب میں ائرپورٹ سے ہوٹل کی طرف روانہ ہوا تو میں نے غور کیا کہ تمام سڑکیں خالی ہیں۔ میں نے وہیں کے رہنے والے اپنے ساتھی سے جو مجھے ائرپورٹ سے لینے آیا تھا، سے پوچھا کہ کیا بات ہے جناب تمام سڑکیں خالی کیوں ہیں؟ اس نے جواب دیا کہ سر تمام لوگ اپنے اپنے کاموں پر گئے ہوئے ہیں اس لئے تمام سڑکیں خالی ہیں۔ جب مولانا صاحب اپنی میٹنگ سے فارغ ہو کر شام کے وقت واپسی کے لئے ائرپورٹ نکلے تو پھر دیکھا کہ وہی نظارہ تھا یعنی تمام سڑکیں صبح کی طرح ہی خالی تھیں۔ انھوں نے پھر اپنے ساتھی سے سوال کیا کہ اب سڑکیں خالی ہونے کی کیا وجہ ہے؟ کیا ابھی تک لوگ کام سے نہیں لوٹے؟ اس نے جواب دیا کہ مولانا صاحب اس وقت لوگ کام کاج سے فارغ ہو کر گھروں کو لوٹ آتے ہیں اور کھانا کھا کر آرام کرتے ہیں، تھوڑا وقت اپنی فیملی کے ساتھ گزارتے ہیں اور پھر جلدی سو جاتے ہیں تا کہ اگلے دن کے کام کے لئے ترو تازہ ہو کر اٹھیں۔ کام کے دنوں میں یہاں یہی منظر ہوتا ہے۔ یہ تو تھا ایک غیر مسلم ملک کے ماحول کا منظر، اب آجایئے سعودی عرب کی طرف۔
سعودی عرب کے ایک اسکالر کا کہنا ہے کہ تمام ترقی یافتہ اقوام کے لوگ دن میں آٹھ گھنٹے کام کرتے ہیں جب کہ سعودی عرب کے لوگ پورے دن میں صرف 25 منٹ کام کرتے ہیں۔ اب آپ مسلمانوں کے کام کرنے کا اندازہ خود ہی لگا لیں۔ سعودی عرب کے ہی ایک اور اسکالر کا کہنا ہے یہ حقیقت ہے کہ ہمارے پاس اتنا پیسہ ہے کہ ہم دنیا کی مہنگی سے مہنگی چیز خرید سکتے ہیں مگر ہم نے آج تک ایک سوئی بھی ایجاد نہیں کی۔ ہمارے ملک میں ڈاکٹرز، انجینئرز، سائنٹسٹ اور ورکرز سب دوسرے ممالک سے آکر کام کرتے ہیں اور ہم کچھ نہیں کرتے صرف بیٹھ کر کھاتے ہیں۔
بیٹھ کر کھانے اور چند حقوق اللہ ادا کردینے سے ہمارا دین مکمل نہیں ہوتا۔ جب تک ہم حقوق العباد اور محنت و مشقت کی طرف نہیں آئیں گے، ہم بحیثیت مسلمان دنیا کی نظروں میں کبھی سرخرو نہیں ہوں گے۔

غوث اعظم کا تقوی

غوث پاک کا تقویٰ 
واہ کیامرتبہ اے غوث ہے بالا تیرا
اونچے اونچوں کے سروں سے قدم اعلیٰ تیرا
سربھلا کیا کوئی جانے کہ ہے کیسا تیرا
اولیاء ملتے ہیں انکھیں وہ ہے تلوا تیرا
پیروں کےپیر میروں کے میر قطب ربانی محبوب سبحانی پیر لا ثانی غوث الثقلین  شیخ محی الدین عبد القادر جیلانی بغدادی رضی اللہ تعالیٰ عنہ کا تقویٰ شعاری اور حالات زندگی پر مختصر سا مضمون  پیش خدمت ہے
ناظرین کرام ! ملاحظہ فرمائیں اور یہ حقیر اسیر تاج الشریعہ کو دعاوئں میں یاد رکھیں
شیخ محقق سیدنا عبد الحق محدث دھلوی علیہ الرحمہ اپنی کتاب اخبار الاخیار شریف میں فرماتے ہیں کہ حضور غوثٍ اعظم فرماتے ہیں میں نے پندرہ سال مسلسل اس طرح گزاریے  ہیں کہ ایک ٹانگ پر کھڑے ھوکر عشاء اور فجر کے درمیان میں ہر روز پورا قرآن ختم کیا کرتاتھا پندرہ سال   میں نے اس طرح گزارے اور چالیس سال نمازٍ عشاء کےوضو سے فجر کی نماز پڑھی
ایک جگہ ایک آدمی نے رقعہ لکھکر بھیجاکہ انکا وضو نہیں ٹوٹتاتھا انکی ہوا نہیں خارج ہوتی تھی
میں نے کہا نہیں ہوتی تھی.کیونکہ وہ تیری طرح چھہ چھہ روٹیاں کھاکر اور چھہ چھہ پیالے دال پی کر نہیں سوتے تھے
وہ تیری طرح آلو کا پیالہ اور گوشت کا پیالہ کھاکے نہیں سوتے تھے اس طرح سے انکا وضو نہیں ٹوٹتا تھا
کیونکہ انکا جسم بھی سراپا روح بن چکا تھا
کتابیں پڑھ کے دیکھو
سرکار حضور غوث پاک رضی اللہ تعالیٰ عنہ فرماتے ہیں کہ میں نے  پچیس سال تک جنگلوں میں اس طرح عبادت کی کہ میرا جسم بھی سراپا روح بن گیا
میری غزا اللہ کا ذکر بن گیا
میری غزا اللہ کی عبادت ھی بن گئی
میں سالوں سال تک کچھہ نہیں  کھاتاتھا
مجھے بھوک نہیں لگتی تھی
غوث پاک اُٹھتے بیٹھتے سوتے جاگتے چلتے پھرتے ہرحال میں اللہ تعالیٰ کا ذکر تے تھے
ہر قدم ہر پل ہرکروٹ میں اللہ کا ذکر کرتے تھے کسی حال میں اللہ کی یاد سے غافل نہیں ہوتے
رات ہو یا دن صبح ہو یا شام تنہا ہو یا مجمع میں ہر دم ہر وقت ہر گھڑی ہر پل ہر لمحہ ہر لحظہ ذکر خدا میں زندگی گزرتی تھی
ایسے تھےغوث پاک
آج ہم اسی غوث پاک کے ماننے چاہنے والے دیوانے و مستانے انکے غلام ہیں کہ ہماری نمازیں پنجہ وقتہ قضاء ہورہی ہیں مہینوں مہینہ کی نمازیں چھوٹ رہی ہیں سالوں سال مسجد کے دروازہ تک نہیں پہونچتے ہیں
ہماری زندگی لوح لحآن میں گزر رہی ہیں دنیا کی محبت میں سرشار ہیں
بدگوئی بد کلامی بد کرداری ہماری زندگی ہے
ہمیں فکر نہیں ہوتی
ہمیں درد نہیں ہوتا
ہمیں غم نہیں ہوتا
ہمیں خوف نہیں ہوتا
ہمیں ڈر نہیں ہوتا
ہمیں دکھ نہیں ہوتا
ہمیں خیال نہیں آتا
کاش ! ہم اپنی فکر کئے ہوتے تو آج ہمارا کردار اچھا ہوتا
ہمارا خیال اچھا ہوتا
ہمارا صبح شام اچھا ہوتا
ہمارا دن رات اچھا ہوتا
ہمارا رھن سھن اچھا ہوتا
ہمارا دین و دنیا اچھا ہوتا
ہماری صورت و سیرت اچھی ہوتی
ہماری فکر اچھی ہوتی
ہماری زندگی اچھی ہوتی
ہماری بندگی اچھی ہوتی
ہمار رفتار و گفتار اچھا ہوتا
ہمارا ہر فعل اچھا ہوتا
ہمارا ہر کام اچھا ہوتا
ہمارا ہر دور اچھا ہوتا
ہمارا ہر وقت اچھا ہوتا
آج ہماری زبان ذکرِخدا سے غافل
آج ہمارا کردار سنت سے ہٹ کر
آج ہماری سوچ وفکر دنیاوی
آج ہماری زندگی حدیث و قرآن سے ہٹ کر
آج ہماری عقل و شعور میں فطور
آج ہمارا سماج کا ماحول غلط
آج ہمارا عقیدہ بزرگوں کے قول و فعل سے دور
آج ہماری صورت و سیرت دنیاوی
کیا یہی زندگی ہے
کیا یہی غوث کی غلامی ہے
کیا یہی سچائی ہے
کیا یہی حق گوئی ہے
کیا یہی حق شناسی ہے
کیا یہی مسلمانی ہے
کیا یہی ایمانی ہے
کیا یہی دینداری ہے
کیا یہی تقویٰ شعاری ہے
کیا یہی عقیدہ ہے
کیا یہی حق نمائی ہے
کیا یہی رہنمائی ہے
کیا یہی بندہ نوازی ہے
کیا یہی نیک اعمالی ہے
کیا یہی نیک حسن ہے
اللہ پاک ہم سب کو غوث پاک اورتمام بزرگان دین کی سیرتوں پر چلنے کی توفیق عطا کرے
اور غوث اعظم کے قول و فعل پر چلائے اور جلائے
آمین بجاہ سید المرسلین
پیشکش -:- فیضان تاج الشریعہ گروپ
و نوری کمیٹی ہری پور
مرتب -:- اسیر تاج الشریعہ مولانا جنید رضا نوری ہری پوری
مقیم حال -;- صدر المدرسین دارالعلوم نوریہ قادریہ نور نگر مجھیا وارڈ نمبر 34 کشنگنج

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