👇संविधान का सच्च 👇*इसको बहुत ही गौर से पढ़े और आगे शेयर जरूर करें*
👉पेज न.132 :-
15 अगस्त 1947
पार्टिशन के बाद जो मुस्लिम अपनी इच्छा से भारत में रहना चाहता है बा इज़्ज़त भारत में रह सकता है क्यों की ये वो मुस्लिम है जिनके पुर्वजो ने भारत की आजादी में पूरा पूरा योगदान दिया और भारत के लिए बलिदान दिया ।
👉पेज न 156 :-
आरएसएस देश का सबसे बड़ा दुशमन है क्युकी इस संघठन ने भारत की आजादी के वक्त तिरंगा जलाया था और माहात्मा गाधी का हत्यारा आरएसएस पार्टी का नेता था और आरएसएस पर बैन लगाया।
👉1956 में जब आरएसएस पर से बैन हटाया तब कुछ शर्ते रखी वो शर्ते ये है की आरएसएस कभी भी राजनीती पार्टी में भाग नहीं लेगी सविधान में कभी शामिल नहीं होगी देशभक्त पार्टी कभी नही बनेगी सिर्फ एक संगठन ही चलाएगी ।
👉पेज न 197 :-
1971,
370 धारा , कश्मीर का भारत में विलय यानि भारत देश में शामिल होना कश्मीर एक आजाद देश था जिसे पाकिस्तान अपने देश में शामिल करना चाहता था इसको भारत में शामिल करने के लिए कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया यानि 370 धारा ।
👉और अब ये 370 धारा क्या है ?
और कश्मीर में क्यों लगी है ?
और क्यों नहीं हट सकती ?
370 धारा में ये है की कश्मीर में 6 साल का कार्यकाल है कोई भी व्यक्ति कश्मीर की लड़की से शादी कर के वहां की नागरिकता पा सकता है कश्मीर के अलावा बाहर का कोई भी इन्सान वहा पर जमीन नहीं खरीद सकता कश्मीर के पास केंद्र के सभी अधिकार है रक्षा और सूचना मंत्रालय छोड़ कर ।।
👉हस्ताक्षर :-
1.मोहम्मद अली जिन्ना ,
2.पंडित जवाहर लाल नेहरु ,
3.इंद्रा गांधी,
4.जरनल गेरी रिच्ल्ड ।।
👉ये सब साफ़ साफ सविधान में लिखा है। फिर भी भगवा पार्टीयां मुस्लिमो को गद्दार समझती हैं और आरएसएस को देशभक्त पार्टी समझति है ।।
👉भाइयो ये बहुत ही काम की बात है । इसे इतना फारवर्ड करना के इन सब भगवाधारियों की हक़ीक़त ज़ाहिर हो जाये।
👉 भगवा धारी हमारी मजलिस की हिस्ट्री खोज खोज कर सोशल नेटवर्किंग पर फैला रहे हैं । अब हम इनकी हिस्ट्री भी दुनिया के सामने ला कर इनकी असलियत बता देंगे। c/p
क्या आप जानते हैं कि भगत सिंह के ‘केन्द्रीय असेम्बली’ में बम फैंकने के बाद उनके परिवार की मदद के लिये कोई आगे नहीं आया यह सोचकर कि ब्रिटिश सरकार प्रताड़ित करेगी, बदला लेगी, कोई भी डर की वजह से उनके परिवार को शरण देने के लिए आगे नहीं आया। जो हिन्दू या हिन्दुवादी आज डींगें हांक रहें हैं, उसका प्रशंसक होने का दावा कर रहे हैं, जो आज भगतसिंह की शहादत के गीत गा रहे हैं, उनमें से किसी का कोई पूर्वज भी आगे नहीं आया था। हिन्दु, सिक्ख सभी डर गये थे, शायद सबका ख़ून पानी हो गया था और तब...
सभी विपरीत परिस्थितियों के बावजूद, हर तरह के भय के बावजूद, शेरदिल मौलाना हबीबुर्रहमान लुधियानवी भगत सिंह के परिवार को शरण देने के लिए आगे आये थे।
बाद में जब एक मुस्लिम जज की अदालत में भगत सिंह का मामला पेश हुआ तो उस जज ने मामला लेने से इंकार करते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।
जब कोई हिन्दू या सिक्ख वकील मारे भय के भगत सिंह का केस लड़ने के लिए तैयार नहीं हुआ तो एक मुस्लिम वकील आसिफ अली ने भगत सिंह की पैरवी की थी। इन सब घटनाओं को याद करके और आज की परिस्थितियों को देख कर जो मुस्लिम को बदनाम करने और देशद्रोही का सर्टिफ़िकेट देने का अवसर तलाश करते रहते हैं हालांकि सच्चाई का उन्हें पूर्ण ज्ञान है कि कौन क्या था और क्या है। इन सब बातों पर अनायास हि कुछ पंक्तियां मेरे अंदर गूंजने लगती हैं और मैं गुनगुनाने लगता हूँ : -
"जब गुलों को लहू की ज़रूरत पड़ी
सबसे पहले ये गर्दन हमारी कटी
फिर भी कहते हैं मुझसे ये अहले चमन
यह चमन है हमारा तुम्हारा नहीं"
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